पत्रकारिता दिवस पर विशेष: तो क्या पत्रकार इन्सान नहीं

May 31 2021

पत्रकारिता दिवस पर विशेष: तो क्या पत्रकार इन्सान नहीं
Writer: Girish Chandola (Haldwani, Utterakhand)

गिरीश चन्दोला, हल्द्वानी (India Emotions)। स्वतंत्रता से पूर्व व स्वतंत्रता के बाद से आज तक पत्रकार अपने दायित्वों को बखूबी निभाते आ रहे हैं। इतिहास गवाह है की जब जब समाज या देश पर कोई आपत्ती आई पत्रकारों ने नाते रिश्ते को तिलांजलि देकर सर्वप्रथम अपने फर्ज को अंजाम दिया है। इस बार भी जब देश कोरोनावायरस जैसी महामारी से जूझ रहा था, पत्रकार अपने फर्ज को अंजाम देने के लिए महामारी के बीच आवाम तक खबरें पहुंचाने के लिए दिन रात फील्ड में डटे रहे।  

इसके बावजूद ना तो शासन ना ही प्रशासन और ना ही सरकारों ने उन्हें फ्रंट वारियर्स के सम्मान का देना तो दूर की बात उन्हें फ्रंट वारियर्स तक नहीं माना। जबकि आपने फर्ज को अंजाम देते हुए अब तक कई पत्रकार अपने प्राणों की आहूति दे चुके हैंl इतना ही नहीं अगर उत्तराखंड राज्य के सापेक्ष पत्रकारो की बात करे तो यहा पत्रकारो के हितो की बातें तो मौखिक रुप से हर कोई करता है पर धरातल पर उनकी समस्याओ का निराकरण अब तक कोई नहीं कर पाया।

कोरोना संकटकाल में फ्रण्ट लाईन वारियर्स के रूप में भले ही पत्रकार अपनी सेवाएं दे रहे हो, पर कहीं ना कही आज भी उनकी जिन्दगी ईश्वर के भरोसे ही चल रही है। कई पत्रकार सरकारी सुविधाओ के अभाव में अपनी जान तक गवा चुके है। वैसे तो पत्रकारिता को चौथा स्तम्भ माना गया है लेकिन इसे संविधान में लिखित रुप से कोई दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है।

वर्तमान में सरकार ही नहीं अपितु जनसेवा के कार्यो में जुटे कार्यकर्ताओ ने भी इनकी सुध लेना तक उचित नहीं समझा। नहीं तो ऐसी क्या वजह थी कि आज जहाँ चारो और व्यापार के साथ साथ, रोजी रोटी का सकट मडरा रहा है। ऐसे में क्या पत्रकारिता कर रहे लोगों के सामने ये मुसिबते नहीं मडरा रही होगी। पक्ष हो या विपक्ष हर कोई अपनी बातों को जन जन तक पहुचाने के लिए पत्रकारो की सेवाओ का आनन्द तो लेता है, पर विपदा आने पर सबसे पहले खुद को बचाने के प्रयास में जुट जाता है जबकि विपदा के समय भी पत्रकार निर्भीक होकर अपनी कलम से जनता को हर समस्या से अवगत कराते रहा है।

इसके बावजूद पत्रकारो के हितो की बात करता हुआ कोई नजर नहीं आता। कोरोना संकटकाल में जिस तरह अपनी जान की परवाह किए बगैर जन जन तक लोगों को हर खबर से रुबरु कराने वाला पत्रकार आज भी बेबस ही खण्डा नजर आता है। भाजपा-काग्रेस के अधिकाश कार्यकर्ताओ ने समाजसेवा के नाम पर महज उन लोगों की सेवा की जो अपने आप में पूर्णतः सक्षम है। जो महज अखबारो की सुर्खिया बटोरने तक ही जनसेवा के कार्य में लगे रहे।

समाज को आईना दिखाने वाला पत्रकार आज भी अपनी जान को जोखिम में डालकर जन जन तक खबरें प्रसारित करने का कार्य बखूबी कर रहा है। बिना किसी सरकारी सुविधा के अपने संसाधनों से ही लोगों तक जनसमस्याओ से अवगत कराता आ रहा है। पत्रकारो की जिन्दगी स्वतंत्रता से पूर्व भी सघर्षरत थी और आज भी पत्रकारो का संघर्ष अनवरत जारी है।