जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं के बाद बिहार के लोगों में बढ़ी चिंता

Oct 18 2021

जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं के बाद बिहार के लोगों में बढ़ी चिंता

पटना । जम्मू कश्मीर घाटी में भले ही आतंकियों की गोलियां चल रही हों, लेकिन बिहार के लोगों की चिंताएं बढ़ गई है। पिछले एक पखवारे में जम्मू कश्मीर में बिहार के चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। आतंकियों के इस कायरतापूर्ण घटना को लेकर बिहार के उन लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं, जिनके परिजन दो जून की रोटी की जुगाड में जम्मू कश्मीर गए हैंे।

जम्मू कश्मीर में 5 अक्टूबर को भागलपुर के वीरेंद्र पासवान की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शनिवार को बांका जिले के बाराहाट प्रखंड के रहने वाले अरविंद कुमार साह आतंकियों का निशाना बन गए। रविवार को बिहार के सीमांचल के अररिया जिले के रहने वाले राजा ऋषिदेव और योगेंद्र ऋषिदेव की आतंकियों ने हत्या कर दी।

अररिया जिले के बौंसी थाना क्षेत्र के डाहटोला निवासी राजा ऋषिदेव की मौत की खबर सुनकर गांव में मातम पसर गया है। राजा रोजी रोजगार के लिए छह महीने पहले ही जम्मू कश्मीर गया था। उसके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है।

घटना की सूचना मिलने के बाद मृतक राजा की मां सजनी देवी को बार-बार बेहोश हो जा रही हैं। जब होश में आती हैं तो कहती हैं कि बेटे को उन्होंने जम्मू कश्मीर कमाने जाने से मना किया था। वहां कमाने ही तो गया था, लेकिन कायरों ने उसकी हत्या कर दी।

इधर, बांका के बाराहाट प्रखंड के परघड़ी गांव के रहने वाले अरविंद कुमार साह के घर पर भी मातम पसरा है। आतंकियों ने शनिवार को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस गांव के करीब 150 से 200 लोग जम्मू कश्मीर में रहकर अपना तथा अपने परिवार को पेट पाल रहे हैं। अरविंद की मौत के खबर के दो दिन गुजर गए हैं, लेकिन गांव के अधिकांश घरों में चूल्हे नहीं जले हैं।

गांव के लोग अब अपने गांव के बच्चों को जम्मू कश्मीर छोडकर वापस आने का दबाव डाल रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि कई युवक वापस लौटने की योजना बना रहे हैं। गांव के लोग लगातार अपने जम्मू कश्मीर गए परिवार के सदस्यों को फोन कर कुशलक्षेम पूछ रहे हैंे। उन्हें अब किसी अनहोनी का भय सताने लगा है।

गांव के लोगों को हालांकि यह भी चिंता सता रही है कि बेटे तो वापस आ जाएंगे, लेकिन उनका भरण पोषण कैसे होगा। यहां काम मिलता, तो उन्हें अन्य प्रदेशों में जाने की जरूरत ही क्यों पड़ती है। इस गांव के लोगों की दुविधा से चिंताएं बढ गई हैं।

गांव के ही एक बुजुर्ग की पीड़ा उनके चेहरे पर स्पष्ट छलकती है। उन्होंने कहा कि हमलोग तो गांव में ही खेती बारी कर पेट पाल लेते थे, लेकिन अब ज्यादा पैसे ही चाह में लोग बाहर जा रहे हैं। उन्हें इस बात का भी मलाल है कि अगर अपने राज्य में ही काम मिल जाता तो गांव के बच्चे क्यों बाहर जाते।

अरविंद जम्मू कश्मीर में गोलगप्पा बेचकर परिवार का भरण पोषण करते थे। गांव के लोग अब सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इनकी आतंकियों से क्या दुश्मनी?

--आईएएनएस