ब्लैक, व्हाइट, येलो फंगस: इन तीनों फंगल संक्रमण में अंतर समझिए, जानें कैसे करें इनकी पहचान

May 28 2021

ब्लैक, व्हाइट, येलो फंगस: इन तीनों फंगल संक्रमण में अंतर समझिए, जानें कैसे करें इनकी पहचान

डॉ. राजन गांधी
जनरल फिजिशियन, चाइल्डकेयर हॉस्पिटल, उजाला सिग्नस हॉस्पिटल
डिग्री- एम.बी.बी.एस, डिप्लोमा सी.एच
अनुभव- 25 वर्ष 

देश में कोरोना संक्रमण के मामले कम होने लगे थे, लेकिन इस बीच ब्लैक फंगस ने जोर पकड़ लिया और अब तो कोरोना मरीजों में ब्लैक के साथ-साथ व्हाइट और येलो फंगस के भी मामले सामने आने लगे हैं। इन तीनों फंगल संक्रमण को लेकर लोगों में डर का माहौल है, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि इनसे डरने की नहीं बल्कि इनके बारे में जानने की खुद को उनसे बचाने की जरूरत है। आइए समझते हैं ब्लैक, व्हाइट और येलो, इन तीनों फंगल संक्रमण में अंतर और इनकी पहचान कैसे करें?

ब्लैक फंगस
मेडिकल भाषा में इसे म्यूकोरमाइकोसिस कहा जाता है। यह म्यूकर या रेसजोपस फंगस के कारण होता है। ये फंगस आमतौर पर मिट्टी, सड़े हुए फल और सब्जियों में पनपते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि ब्लैक फंगस साइनस, दिमाग और फेफड़ों को प्रभावित करता है।

व्हाइट फंगस 
मेडिकल भाषा में व्हाइट फंगस को कैनडिडा कहा जाता है। इसमें सफेद धब्बे आ जाते हैं, जीभ पर सफेद दाग दिखाई देने लगते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका संक्रमण किडनी और फेफड़ों में हो सकता है। इससे संक्रमित होने का ज्यादा खतरा उन लोगों को होता है, जो कमजोर इम्यूनिटी वाले हैं, डायबिटीज से पीड़ित हैं और आईसीयू में लंबे समय तक रहे हैं। 

कितना खतरनाक है व्हाइट फंगस? 
विशेषज्ञ कहते हैं कि यह म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस जितना खतरनाक तो नहीं होता, लेकिन फिर भी इसमें मृत्यु दर 10 फीसदी के करीब है। व्हाइट फंगस का संक्रमण तब खतरनाक हो जाता है, जब संक्रमण खून में आ जाता है। 

येलो फंगस 
मेडिकल भाषा में येलो फंगस को म्यूकर सेप्टिकस कहा जाता है। ये फंगस आमतौर पर रेंगने वाले जानवरों में पाया जाता है। यह म्यूकोरमाइकोसिस का ही एक प्रकार है, जिसमें बुखार, कमजोरी, नाक से लाल या काले रंग का रिसाव, नाक के आसपास सनसनी कम होना जैसे लक्षण दिखते हैं। इसमें मृत्यु दर के आंकड़ों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि इससे संबंधित कोई स्पष्ट अध्ययन नहीं है। 
नोट: डॉ. राजन गांधी अत्यधिक योग्य और अनुभवी जनरल फिजिशियन हैं। इन्होंने कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से अपना एमबीबीएस पूरा किया है। इसके बाद इन्होंने सीएच में डिप्लोमा पूरा किया। फिलहाल यह उजाला सिग्नस कुलवंती अस्पताल, कानपुर में मेडिकल डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट फिजिशियन के तौर पर काम कर रहे हैं। यह आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के आजीवन सदस्य भी हैं। डॉ. राजन गांधी को इस क्षेत्र में 25 साल का अनुभव है। 

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