कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया में लापरवाही भी बन सकती है मौत का कारण, पढिय़े क्या हो सावधानी

May 11 2021

कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया में लापरवाही भी बन सकती है मौत का कारण, पढिय़े क्या हो सावधानी

हार्दिक दयाल, इंडिया इमोशंस, लखनऊ। कोरोना के गंभीर मरीजों को दी जाने वाली ऑक्सीजन प्रक्रिया के दौरान ब्लैक फंगस मरीजों में पैठ बना रहा है। कोरोना मरीज ब्लैक फंगस संक्रमण यानि म्यूकॉरमाइकॉसिस का शिकार होकर भी जान गंवा रहे हैं। आम दिनों में ऐसे संक्रमण से मरीजों को बचाना ज्यादा कठिन नहीं, लेकिन इस आपदाकाल में डॉक्टरों, अस्पतालों पर बढ़ा बोझ भी इस अतिरिक्त बीमारी की एक बड़ी वजह बना हुआ है। कहीं ज्यादा सावधानी और संयम बरत कर इस बीमारी से बचा रहा जा सकता है।

गौरतलब है कि, सांस न ले पाने की तकलीफ झेल रहे कोरोना के मरीजों को अस्पताल में ऑक्सीजन देने के दौरान सिलेंडर के रेग्युलेटर में डाले जाने वाला पानी भी घातक साबित हो जाता है। खुद सूबे के चिकित्सा स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. डीएस नेगी कहते हैं कि, ऑक्सीजन सिलेंडर में संक्रमित पानी का इस्तेमाल ब्लैक फंगस की वजह बन सकता है, जिससे बचने की आवश्यकता है। डॉ. नेगी के मुताबिक, डॉयबिटीज या कैंसर के मरीज हैं या ज्यादा दिनों तक वेंटीलेटर और ऑक्सीजन पर रह चुके मरीजों में इस ब्लैक फंगस बीमारी होने की आशंका ज्यादा है।

चेहरे पर नाक या आंखों के आसपास काले चकत्ते जैसे दिखना इस बीमारी का संकेत हो सकता है। महानिदेशक स्वास्थ्य का कहना है यह फंगस आंख के रास्ते सीधे ब्रेन में पहुंच सकती है और बहुत तेजी से यह फैलता है। इसलिए समय रहते इसका इलाज हो जाना चाहिये। इसके पीछे कारण वो पानी भी हो सकता है जिसका इस्तेमाल ऑक्सीजन सिलेंडर के रेग्युलेटर में किया जा रहा है।

ऐसे में ज्यादातर ऑक्सीजन या वेंटीलेटर पर निर्भर रह चुके या रह रहे मरीजों पर तत्काल इसके मद्देनजर कहीं ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। वैसे ब्लैक फंंगस और कोरोना दो अलग-अलग बीमारियां हैं। इसके कारण, इलाज और लक्षण भी अलग हैं, लेकिन कोरोना से गृसित मरीजों जिनकी इम्युनिटी पहले से ही कमजोर है, के प्रति जरा सी लापरवाही जानलेवा बन सकती है। चूंकि कोरोना मरीजों के अस्पताली इलाज के दौरान ही यह बीमारी हावी हो रही है इसीलिए इसको लेकर अब चर्चा और मंथन जोरों पर है।

मालूम हो कि, कोरोना के साथ इस ताजा चुनौती से केन्द्र सरकार भी हलकान है। इस संबंध में केंद्र सरकार ने एक एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है कि अनियंत्रित डाइबिटीज और आईसीयू में ज्यादा दिन बिताने वाले कोविड के मरीजों में ब्लैक फंगस से होने वाली बीमारी म्यूकॉरमाइकॉसिस का अगर सही समय पर इलाज नहीं किया जाए तो यह घातक हो सकती है। इस बीमारी में आंख, गाल और नाक के नीचे काला पड़ जाता है। सबूत के आधार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इसके इलाज और प्रबंधन के बावत जारी एडवाइजरी में कहा गया है कि म्यूकॉरमाइकॉसिस हवा से सांस खींचने पर हो सकती है। इसमें ब्लैक
फंगस अंदर आ जाते हैं जो लंग्स को भी संक्रमित कर सकता हैं।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल लखनऊ के सीनियर कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉ. प्रवीण प्रधान बताते हैं कि किसी मरीजों को कितनी ऑक्सीजन देनी है यह सिलेंडर के रेग्युलेटर में लगे फ्लो-मीटर से निर्धारित किया जाता है। चूंकि नेचुरल ऑक्सीजन बहुत ड्राई होती है और इसे मरीजों को सीधे नहीं दिया जा सकता सो इसे नम करने के लिए फ्लो-मीटर में पानी का इसतेमाल किया जाता है। इस पानी को ही असंक्रमित यानि शुद्ध रखने की आवश्यकता है ताकि मरीज ब्लैक फंगस का शिकार न हो जाय। डॉ. प्रधान की सलाह है कि कोरोना के मरीजों को भी जहां तक हो सके घर पर रह कर ही इलाज कराना चाहिये। मौजूदा आपाधापी में अस्पताल संक्रमण के मद्देनजर सुरक्षित नहीं कहे जा सकते। सावधानी पूरी बरतनी होगी तभी मरीजों का सही इलाज हो सकता है।

गौरतलब है कि कोरोना से संक्रमित मरीज या कोरोना से स्वस्थ्य हुए कई मरीजों में ब्लैक फंगस के लक्षण देखें गये हैं। आमतौर पर उन लोगों में होता है जिनका शरीर किसी बीमारी से लडऩे में कमजोर होता है। वह आदमी अक्सर दवाई लेता है और उसमें कई तरह की स्वास्थ्य संबधी समस्या हो जाती है। इस बीमारी में आंख और नाक के नीचे कालापन पड़ता है। दर्द होना, बुखार आना, खांसी होना, सिर दर्द होना, सांस लेने में दिक्कत, खून की उल्टी, मानसिक स्वास्थ्य पर असर, देखने में दिक्कत, दांतों में भी दर्द, छाती में दर्द इत्यादि इस बीमारी के लक्षण हैं।

लक्षण दिखने के अगर शुरुआती दौर में एंटीफंगल थेरेपी शुरू कर दी जाए तो मरीज की जान बच सकती है। डॉक्टर की सलाह से तुरंत एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाइयां लेनी जरूरी हैं। इस बीमारी को उचित देखरेख से दूर किया जा सकता है।