हमारी समझ ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन...खुद से कीजिए यह सवाल, टेंशन-फ्री हो जाएंगे

Apr 27 2021

हमारी समझ ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन...खुद से कीजिए यह सवाल, टेंशन-फ्री हो जाएंगे

इंडिया इमोशंस, लाइफ डेस्क। इन दिनों ज्यादातर लोगों में मौत का भय समाया है। यह डर उन्हें ही ज्यादा है जिनको कोरोना से होने वाली मृत्यु के आंकड़े, अस्पताल के हालात, ऑक्सीजन और इंजेक्शन की कमी के बारे में जानकारी है। दूसरी ओर वे तो बेखौफ हैं, बिंदास है जिन्हें इनमें से किसी के बारे में पता ही नहीं। जी रहे हैं, बगैर डर वाली जिंदगी...बस मास्क, सोशल डिस्टेसिंग और सैनिटाइजर के प्रयोग का महत्व इन्हें पता है, बाकी से क्या लेना-देना? असल में हमारे भीतर की समझ ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है...और यह समझ छोटी-मोटी दुश्मन नहीं जानलेवा दुश्मन है।

सांस उखडऩे की परेशानियों या ऑक्सीजन की कमी से वे ही जूझ रहे हैं जिन्होंने अपनी समझ कुछ ज्यादा इस बीमारी के रिसर्च यानि इसके इलाज में लगा दी है। वे डिप्रेशन में, तनाव में चले गये और बीमारी ही नहीं सांस न ले पाने वाला सिंड्रोम भी उनपर हावी हो गया। परिणाम महामारी की हाहाकर के रूप में हमारे सामने है। जरा सोचिये तो हमें मौत का भय ही न होता? यानि इसकी समझ ही न होती कि भविष्य में क्या होने वाला है? ठीक वैसे ही जब पैदा होने या पैदा होने के बाद होश संभालने से पहले तक हम थे?

जीवन की सबसे बड़ी कुंजी साकारात्मक होना है। साकारात्मक होना जीवन के प्रति, अपने काम के प्रति अपने परिजनों के प्रति और सामाज के प्रति। हो सकता है कि वर्तमान में आप समाज से, अपने परिवार से, अपने काम से और अपने जीवन से नाखुश हों... आप सबकुछ अपने मुताबिक बदलना चाहते हैं, लेकिन ऐसा तभी संभव हो सकेगा जबकि आपकी भावनाएं, आपका दिमाग आपका तरीका साकारात्मक होगा। निगेटिव अथवा नाकारात्मक विचारों के साथ आप मनमुताबिक बदलाव करने से पहले खुद को ही खत्म कर सकते हैं। इसलिए पॉजीटिव विचार आपको दिलो-दिमाग से मजबूत बनाएंगे।

विचारों को पॉजीटिव बनाने के लिए एक खास टिप्स यहां हम बता रहे हैं-

जब कभी भी आप खुद को अपने जीवन से हताश महसूस करें, जब भी आपको सबकुछ खो जाने का, मृत्यु का या भविष्य होने वाली किसी भी बुरी घटना, बीमाारी का भरय सताये तो आप सीधे अपने मन-मस्तिष्क को उस समयकाल में ले जाइये जबकि आपका जन्म हुआ था। ... और सात सवाल कीजिए खुद से-

1- क्या मैं अपनी मर्जी से पैदा हुआ?
2- क्या मैंने अपनी मर्जी से अपने मां-पिता का चुनाव किया?
3- क्या माता-पिता की आर्थिक स्थिति का आंकलन करके मैंने उनका साथ चुना?
4- क्या अपनी जाति, अपने धर्म का चुनाव करके ही मैं पैदा हुआ?
5- क्या देश और शहर का भी चुनाव मैंने किया?
6- क्या अपने रंग-रूप, अपनी कद-काठी को डिजाइन कर मैंने पैदा होने का निर्णय लिया?
7- क्या उपर वाले से मैंने अपनी किस्मत खुद बैठकर लिखवाई और इस धरती पर अवतरित हुआ?

इसका उत्तर तलाशने के लिए आपको ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़ेगा, उत्तर ''नहीं'' में है।

जब जीवन धारण करने से पहले आपने बारे में कोई निर्णय न ले सके तो इतना हर वक्त भविष्य को लेकर चिंतित क्यो रहें? क्यों अपने हालातों को लेकर परेशान रहे? परमात्मा या उपर वाले ने हमें धरती पर भेजा है तो किस्मत भी साथ ही दी है। अपने हाथ में जो एकमात्र उपाय है वह कोशिश... हम केवल अपने हालातों को सुधारने, आपने कष्टों से मुक्ति पाने, कुछ अच्छा करने, ज्यादा कमाने, बड़ा आदमी बनने की महज कोशिश कर सकते हैं। ... और यह कोशिश हमें पूरी इमानदारी, पूरी लगन-मेहनत से करनी होगी। क्योंकि जब हम बगैर प्लानिंग के इस धरती पर आ ही गये हैं तो इससे बढ़कर पॉजीटिवीटी क्या होगी? ें

धरती पर हमें परमात्मा जानवार, सांप-बिच्छू, कुत्ता-नेवला बनाकर भी तो भेज सकता था? ऐसा नहीं हुआ क्योंक हमें इस सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में जन्म लेना था... इंसान के रूप में। हम इंसान अगर बन ही गये तो हमें अब आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता। प्रयास पूरी साकारात्मक सोच के साथ निरन्तर करती रहनी चाहिये। जीवन का सार भी यही है। जीवन में सुख व दुख आपकी सोच पर निर्भर करता है ... अपने जीवन को एक फिल्मी कलाकार के रूप में देखना शुरु कीजिए? सुख हो तो वैसी एक्टिंग और दुख हो तो वैसी.. सीन तो बदलती रहती है.. वैसे भी जीवन एक रंगमंच ही तो है।