जानें आम आदमी के जीवन में कहां-कहां उपयोग में है सी वी रमन की खोज

Feb 28 2022

जानें आम आदमी के जीवन में कहां-कहां उपयोग में है सी वी रमन की खोज
सुशील द्विवेदी

India Emotions, Lucknow. किसी भी देश की तरक्की में विज्ञान का बहुत अहम योगदान होता है। भारत में राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में सन् 1986 से प्रति वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (नेशनल साइंस डे) मनाया जाता है। प्रोफेसर चंद्रशेखर वेंकटरमन ने 28 फरवरी सन् 1928 में कोलकाता में इस दिन एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक खोज की थी जो ‘रमन प्रभाव’ के रूप में प्रसिद्ध है। इस कार्य के लिए उनको 1930 में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। सर सीवी रमन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई थे।

हर वर्ष विज्ञान दिवस की एक थीम निश्चित की जाती है इस वर्ष की थीम है- सतत भविष्‍य के लिए विज्ञान और तकनीक पर समग्र चर्चा, वर्तमान कोरोना महामारी से मानवता की चल रही लड़ाई के समय में यह थीम और अधिक प्रासंगिक हो गई है, क्‍योंकि आमजन मैं विज्ञान के प्रति जागरूकता बढ़ी है वो विज्ञान की एक अद्भुत खोज वैक्सीन से वर्तमान मैं कोरोना वाइरस से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस थीम से स्पष्ट होता है कि “आत्मनिर्भर भारत” के निर्माण में भारत के वैज्ञानिक कौशल की प्रमुख भूमिका होगी।

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का उद्देश्य
इस दिवस का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों आम लोगों को विज्ञान के प्रति आकर्षित करना, विज्ञान के क्षेत्र में नये प्रयोगों के लिए प्रेरित करना, लोगों के जीवन मैं वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक स्वभाव पैदा करना तथा विज्ञान से जुड़ी विभिन्न भ्रांतियों को दूर करके उनके विषय में एक सही सोच और दर्शन का विकास करना है।

क्या थी रमन की खोज
सर सी वी रमन एक ऐसे प्रख्यात भौतिक-विज्ञानी थे जो न सिर्फ हम भारतीयों के लिए बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। दुनिया मैं उनकी खोज को रमन प्रभाव अर्थात रमन इफेक्ट के नाम से जाना जाता है। लगभग एक दशक पहले की गई वैज्ञानिक खोज आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी कि पहले थी। सी. वी. रमन ने ही पहली बार बताया था कि आसमान और पानी का रंग नीला क्यों होता है? दरअसल रमन एक बार साल 1921 में जहाज से ब्रिटेन जा रहे थे। जहाज की डेक से उन्होंने पानी के सुंदर नीले रंग को देखा। उस समय से उनको समुद्र के पानी के नीले रंग पर रेलीग की व्याख्या पर शक होने लगा। जब वह सितंबर 1921 में वापस भारत आने लगे तो अपने साथ कुछ उपकरण लेकर आए। सीवी रमन ने उपकरणों की मदद से आसमान और समुद्र का अध्ययन किया। वह इस नतीजे पर पहुंचे कि समुद्र भी सूर्य के प्रकाश को विभाजित करता है जिससे समुद्र के पानी का रंग नीला दिखाई पड़ता है। जब वह अपने लैब में वापस आए तो रमन और उनके छात्रों ने प्रकाश के बिखरने या प्रकाश के कई रंगों में बंटने की प्रकृति पर शोध किया। उन्होंने ठोस, द्रव्य और गैस में प्रकाश के विभाजन पर शोध जारी रखा। फिर वह जिस नतीजे पर पहुंचे, वह 'रमन प्रभाव' कहलाया। रमन प्रभाव बताता है कि जब प्रकाश किसी पारदर्शी पदार्थ से गुजरता है तो उस दौरान प्रकाश की तरंगदैर्ध्‍य में बदलाव दिखता है। यानी जब प्रकाश की एक तरंग एक द्रव्य से निकलती है तो इस प्रकाश तरंग का कुछ भाग एक ऐसी दिशा में फैल जाता है जो कि आने वाली प्रकाश तरंग की दिशा से भिन्न है। प्रकाश के क्षेत्र में उनके इस काम के लिए 1930 में फिजिक्स में नोबेल प्राइज मिला।

रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी
आज रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के रूप मैं उनकी खोज का इस्तेमाल दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में हो रहा है, इसकी मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है। जब भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का ही हाथ था। फोरेंसिक साइंस में तो रमन प्रभाव का खासा उपयोग हो रहा है और यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी। दरअसल, जब खास तरंगदैर्ध्य वाली लेजर बीम किसी चीज पर पड़ती है तो ज्यादातर प्रकाश का तरंगदैर्ध्य एक ही होता है। लेकिन हजार में से एक ही तरंगदैर्ध्य मे परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन को स्कैनर की मदद से ग्राफ के रूप में रिकॉर्ड कर लिया जाता है। स्कैनर में विभिन्न वस्तुओं के ग्राफ का एक डाटाबेस होता है। हर वस्तु का अपना ग्राफ होता है, हम उसे उन वस्तुओं का फिंगर-प्रिन्ट भी कह सकते हैं। जब स्कैनर किसी वस्तु से लगाया जाता है तो उसका भी ग्राफ बन जाता है। और फिर स्कैनर अपने डाटाबेस से उस ग्राफ की तुलना करता है और पता लगा लेता है कि वस्तु कौन-सी है। हर अणु की अपनी खासियत होती है और इसी वजह से रामन स्पैक्ट्रोस्कोपी से खनिज पदार्थ, कार्बनिक चीजों, जैसे- प्रोटीन, लिपिड ,डीएनए ,आर एन ए और अमीनो एसिड का पता लग सकता है।

दैनिक जीवन मैं रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी के उपयोग
मेडिकल के क्षेत्र में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग कोशिका और उत्तकों पर शोध के लिए डीएनए/आरएनए विश्लेषण में, लाइलाज कैंसर सहित अन्य बीमारियों को समझने में , रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं का पता लगाने , आंतरिक पैकेजिंग को खोले बगैर नकली दवाओं का पता लगाने के लिए, औषधियों के गुणवत्ता निर्धरण में और तो और वर्तमान कोरोना वायरस के लिपिड और प्रोटीन की पहचान कर उसे पहचानने भी रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी की मुख्य भूमिका रही।>

-फॉरेंसिक साइंस के अनर्गत हवाईअड्डे, रेल्वे स्टेशन की सुरक्षा के दौरान विस्फोटकों का पता लगाने
-पैकेट्स या बक्सों को बिना खोले उनके अन्दर विद्यमान विशिष्ट पदार्थों (जैसे मादक पदार्थों) के संसूचन (डिटेक्शन) में भी प्रयोग होता हैं।
-पेट्रोकेमिकलों और प्रसाधन सामग्रियों के निर्माण प्रक्रमों के अध्ययन, मॉनीटरन और गुणवत्ता निर्धरण में स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया जाता है
-भूगर्भशास्त्र और खनिज-वैज्ञानिक रत्नों और खनिजों की पहचान तथा विभिन्न दशाओं में खनिज-व्यवहार आदि का अध्ययन करने के लिए इस तकनीक का उपयोग करते हैं।
• सोना चांदी हीरों सहित अन्य धातु के आभूषणों की गुणवत्ता और गुणों के अध्ययन के लिए रमन प्रभाव का उपयोग किया जा रहा है।

विज्ञान सत्य को उजागर करता है। विज्ञान असत्य पर सत्य की जीत का परिचायक है। विज्ञान अंधविश्वास को ख़त्म करता है। विज्ञान जीवन को विश्वास से परिपूर्ण करता है ।आज के दौर मैं हमारे देश मैं विद्यार्थियों युवाओं में वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करना, उन तक विज्ञान को सरल भाषा मैं पहुंचाना अति आवश्यक है क्योंकि हमारे देश मैं विद्यार्थियों की संख्या,युवाओं की संख्या पूरी दुनिया मैं सबसे ज्यादा है विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में आज भारत दुनिया के शीर्ष देशों में से एक है। विश्व में भारत तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति है, जिसमें 634 विश्वविद्यालय सालाना 16,000 से अधिक डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक प्रकाशनों की संख्या के मामले में भारत विश्व स्तर पर नौवें स्थान पर है। अगर हमारे स्कूली बच्चे युवाजन भविष्य मैं विज्ञान मैं अपना कैरियर बनाते हैं भारत की महान वैज्ञानिक परंपरा को आत्मसात करते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब हम सम्पूर्ण विश्व मैं भारत के विज्ञान कौशल को दुनिया के कौने कौने मैं फैलाकर मानवता के हित में योगदान दे सक्ने मैं निश्चय ही सफल होगें।


लेखक- सुशील द्विवेदी जाने माने विज्ञान संचारक व केंद्रीय विद्यालय अलीगंज लखनऊ में कार्यरत