सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से कहा हमारे फैसलों का सम्मान नही, धैर्य की परीक्षा मत लीजिए

Sep 06 2021

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से कहा हमारे फैसलों का सम्मान नही, धैर्य की परीक्षा मत लीजिए

india emotions, नई दिल्ली। कोर्ट के आदेश बाद ट्रिब्यूनल में खाली वैकेंसी न भरे जाने और ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट पास न किए जाने पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि आप हमारे फैसलों का सम्मान नहीं कर रहे हैं, हमारे धैर्य की परीक्षा मत लीजिए।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि अब तक कितने लोगों को अपॉइंट किया गया है। आपने कहा था कि कुछ लोगों का अपॉइंटमेंट हुआ था, उसका अपॉइंटमेंट कहां है? मद्रास बार एसोसिएशन में हमने जिन प्रावधानों को खत्म किया था, ट्रिब्यूनल एक्ट भी ठीक उसी तरह है। हमने जो निर्देश आपको दिए थे, उसके हिसाब से अभी तक अपॉइंटमेंट क्यों नहीं हुए। सरकार अपॉइंटमेंट न करके ट्रिब्यूनल को शक्तिहीन बना रही है। कई ट्रिब्यूनल तो बंद होने के कगार पर हैं।

हम इन हालात से बेहद नाखुश हैं। हमारे पास अब केवल तीन विकल्प हैं। पहला- हम कानून पर रोक लगा दें। दूसरा- हम ट्रिब्यूनल बंद कर दें और सारे अधिकार कोर्ट को सौंप दें। तीसरा- हम खुद अपॉइंटमेंट कर लें। मेंबर्स की कमी के चलते NCLT और NCLAT जैसे ट्रिब्यूनल में काम ठप है।

सरकार का पक्ष रहते हुए तुषार मेहता ने कहा कि सर्च और सिलेक्शन कमेटी की रिकमेंडेशन पर फाइनेंस मिनिस्ट्री दो हफ्ते में फैसला लेगी। मुझे 2-3 दिन का वक्त दीजिए, तब मैं आपके सामने इस मुद्दे पर जवाब पेश करूंगा। इस पर अदालत ने कहा कि हम सोमवार को इस मामले की सुनवाई करेंगे और उम्मीद है कि तब तक अपॉइंटमेंट हो जाएंगे।

रिफॉर्म एक्ट पर कोर्ट ने कहा- फैसले के खिलाफ कानून नहीं बना सकते
अदालत ने कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट के खिलाफ दायर एक पिटीशन पर भी नोटिस जारी किया। कांग्रेस सांसद की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जिन प्रावधानों को दोबारा लागू किया गया है, वो वही हैं, जिन्हें कोर्ट ने पहले खत्म कर दिया था। कोर्ट ने कहा,अगर आपको सुप्रीम कोर्ट के दो जजों पर भरोसा नहीं है,तो हमारे पास विकल्प नहीं बचता है। मद्रास बार एसोसिएशन का फैसला अटॉर्नी जनरल को सुनने के बाद ही दिया गया था। इसके बाद भी आप हमारा आदेश नहीं मान रहे हैं तो ये क्या है? विधायिका फैसले के आधार को तो छीन सकती है, पर वो ऐसा कानून नहीं बना सकती जो फैसले के खिलाफ हो।