अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में वकील ने कहा, अवशेष से साफ पता चलता है की यहां एक विशाल मंदिर था

Aug 16 2019

अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में वकील ने कहा, अवशेष से साफ पता चलता है की यहां एक विशाल मंदिर था

इंडिया इमोशंस न्यूज अयोध्या/नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद (Ramjanmabhoomi-Babri Masjid dispute) को लेकर सुनवाई चल रही है। शुक्रवार को रामलला विराजमान के वकील सीएस. वैद्यनाथन ने कोर्ट में बताया कि खुदाई से मिले अवशेष से साफ है कि यहां एक ढांचा नहीं बल्कि कई स्तम्भों वाला विशाल मंदिर मौजूद था, जहां पर कई बड़े-बड़े कक्ष थे। ये कक्ष घरों की संरचना से बिल्कुल अलग थे। उन्होंने कहा कि वहां पर नए स्ट्रक्चर की कोई नई नींव नही है, वहां 15 खंभों वाला स्ट्रक्चर भी था।

रामलला के वकील की तरफ से कहा गया कि ASI की इस रिपोर्ट में इतने पुख्ता सबूत हैं जिनसे साबित होता है कि मस्जिद का निर्माण धार्मिक मकसद से नहीं बल्कि बदनियत से दूसरे धर्म को कुचलने के लिए किया गया था।

अयोध्या राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर शुक्रवार की सुनवाई पूरी हो गई। अब अगली सुनवाई सोमवार को होगी
इससे पहले रामलला विराजमान के वकील सीएस. वैद्यनाथन ने अदालत में नक्शा और रिपोर्ट दिखाकर कहा कि जन्मभूमि पर खुदाई के दौरान स्तम्भ पर शिव तांडव, हनुमान और देवी देवताओं की मूर्तियां मिली थीं। इसके अलावा पक्का निर्माण में जहां तीन गुम्बद थे, वहां बाल रूप में भगवान राम की मूर्ति थी।
इसके अलावा उन्होंने बताया कि सुमित्रा भवन में शेषनाग की मूर्ति भी मिली थी। रामलला के वकील सीएस. वैद्यनाथन ने बताया कि पुरातत्व विभाग की जनवरी 1990 की जांच और रिपोर्ट में भी कई तस्वीरें और उनका साक्ष्य दर्ज हैं। 11 रंगीन तस्वीरें उस रिपोर्ट के एल्बम में हैं जिनमें स्तंभों की नक्काशी का डिटेल चित्रण और वर्णन है। उन्होंने आगे बताया कि अप्रैल 1950 में विवादित क्षेत्र का निरीक्षण हुआ तो कई पक्के साक्ष्य मिले। इसमें नक्शे, मूर्तियां, रास्ते और इमारतें शामिल हैं।

परिक्रमा मार्ग पर पक्का और कच्चा रास्ता बना था, आसपास साधुओं की कुटियाएं थी। रामलला के वकील ने इस दौरान ASI की रिपोर्ट की एल्बम की तस्वीरें भी दिखाते हुए कहा कि मस्जिद में मानवीय या जीव जंतुओं की मूर्तियां नहीं हो सकती हैं, अगर हैं तो वह मस्जिद नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस्लाम मे नमाज़/प्रार्थना तो कहीं भी हो सकती है। मस्जिदें तो सामूहिक साप्ताहिक और दैनिक प्रार्थना के लिए ही होती हैं।
इस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि कहीं पर भी नमाज़ अदा करने की बात गलत है, ये इस्लाम की सही व्याख्या नहीं है। इस पर रामलला के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि गलियों और सड़कों पर भी तो नमाज़ होती है। सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान की तरफ से 1990 में ली गई तस्वीरों के हवाला देते हुए बताया कि इन तस्वीरों में दिखाए गए स्तंभों में शेर और कमल उकेरे गए हैं। इस तरह के चित्र कभी भी इस्लामिक परंपरा का हिस्सा नहीं रहे हैं।

इस पर जस्टिस भूषण ने पूछा कि 1950 में कमीशन द्वारा लिए गए फोटो जो जगह के बारे में बताते हैं वो 1990 में ली गई तस्वीरों के मुकाबले ज्यादा साफ, स्पष्ट और समुचित लगते हैं। लकड़ी की वस्तु में मौजूद कार्बन की मात्रा से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कितना पुराना है। इसी बात को लेकर अदालत में बहस हुई, क्योंकि मूर्ति पत्थर की बताई गई। मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया कि ईटों की कार्बन डेटिंग नहीं हो सकती है। कार्बन डेटिंग तभी हो सकती है जब उसमें कार्बन की मात्रा मौजूद हैं। रामलला के वकील की तरफ से भी कहा गया कि देवता की कार्बन डेटिंग नहीं हुई है।

आपको बताते जाए कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है। इस पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं।