अयोध्या केस : सुप्रीम कोर्ट में वकील ने बताया,ब्रिटिश राज ने भी मस्जिद की जगह राम मंदिर माना

Aug 07 2019

अयोध्या केस : सुप्रीम कोर्ट में वकील ने बताया,ब्रिटिश राज ने भी मस्जिद की जगह राम मंदिर माना

इंडिया इमोशंस न्यूज अयोध्या/नई दिल्ली। अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर आज भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में 5 जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने निर्मोही अखाड़ा से कहा है कि आप अगले दो घंटों में रामजन्मभूमि से जुड़े साक्ष्य पेश करें। इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप हमें रामजन्मभूमि से जुड़े असली दस्तावेज दिखाएं। इसके बाद निर्मोही अखाड़े के वकील ने जवाब दिया कि सभी दस्तावेज इलाहाबाद हाईकोर्ट के जजमेंट में दर्ज हैं। रामलला की ओर से परासरण ने कहा कि लोग रामजन्मभूमि को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। पुराण और ऐतिहासिक दस्तावेज में इस बात के सबूत भी मिले हैं। ब्रिटिश राज में भी जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस जगह का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह राम जन्मस्थान का मंदिर माना है। उन्होंने इस दौरान वाल्मीकि रामायण का उदाहरण भी दिया।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज में जज वैसे तो अच्छे थे, लेकिन वो भी अपने राज के उपनिवेशिक हित के खिलाफ नहीं जाते थे।

मंगलवार को निर्मोही अखाड़े की तरफ से बात रखी गईं और जमीन पर मालिकाना हक मांगा था। इस पर निर्मोही अखाडे ने कहा कि 1982 में एक डकैती हो गई थी। इसमें उनके कागजात खो गए। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जजों ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि क्या आपके पास इस बात को कोई सबूत हैं जिससे आप साबित कर सके कि रामजन्मभूमि की जमीन पर आपका कब्जा है। इसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि 1982 में एक डकैती हो गई थी। इसमें उनके कागजात खो गए। इसके बाद जजों ने निर्मोही अखाड़ा से अन्य सबूत पेश करने को कहा है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से पूछा कि आप किस आधार पर जमीन पर अपना हक जता रहे हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप बिना मालिकाना हक जताए पूजा-अर्चना कर सकते हैं, लेकिन पूजा करना और मालिकाना हक जताना अलग-अलग बातें हैं।

निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि ओनरशिप का मतलब मालिकाना हक नहीं बल्कि कब्जे से है। इसलिए उन्हें रामजन्मभूमि पर क़ब्ज़ा दिया जाए।

आपको बताते जाए कि इससे पहले मंगलवार को निर्मोही अखाड़े की तरफ से मंगलवार को जो तर्क रखे गए उसमें बताया गया कि 1850 से ही हिंदू पक्ष वहां पर पूजा करता आ रहा है। उनकी ओर से कहा गया कि 1949 से उस विवादित स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी गई है। ऐसे में मुस्लिम पक्ष का हक सरासर गलत है।