एक पक्ष से नुकसान और दूसरे पक्ष से सहायता, किसे चुनेगा भारत?

Apr 24 2021

एक पक्ष से नुकसान और दूसरे पक्ष से सहायता, किसे चुनेगा भारत?

बीजिंग| हाल ही में भारत में कोविड-19 महामारी की स्थिति तेजी से बिगड़ रही है, जिस पर न सिर्फ भारतीय जनता को चिंता है, बल्कि विश्व के विभिन्न देशों ने भी काफी ध्यान दिया है। इस लेख में हम बारी-बारी से भारत में महामारी से पैदा गंभीर स्थिति, मौतों की अधिक संख्या, सक्षम चिकित्सा व अंतिम संस्कार सेवा प्रणाली, और बेबस मोदी सरकार की चर्चा नहीं करना चाहते, क्योंकि हम नहीं चाहते कि ऐसा करके केवल भारतीय जनता के घाव पर नमक छिड़का जाए, जिससे वे और उदास व मजबूर हों। यहां हम दो चीनी पुराने मुहावरों के माध्यम से भारत की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना चाहते हैं। आशा है, चीन की पुरातन सभ्यता से आई बुद्धि से भारतीय जनता को वास्तविक स्थिति समझने और मुसीबतों से निकलने में मदद की जा सकेगी।

पहला मुहावरा है 'लो चि श्या शी'। इसका मतलब है किसी को कुएं में गिरते हुए देखा, और उसको बचाने के बजाय उस पर पत्थर फेंकें। यानी मुसीबतों में फंसे लोगों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना। उदाहरण के लिए, जब भारतीय जनता महामारी से पीड़ित है और मदद की आवश्यकता है, तो अमेरिका ने वर्तमान में उन्हें बचाने का एकमात्र उपाय-- कोविड-19 रोधी टीके के कच्चे मालों की आपूर्ति को बंद किया।

अब हम एक साथ देखें कि अमेरिका, जो खुद को 'विश्व रक्षक' मानता है, ने क्या किया? जो बाइडेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद फौरन राष्ट्रीय रक्षा उत्पादन अधिनियम के हवाले से टीके के उत्पादन में काम आने वाली प्रमुख सामग्रियों के निर्यात को बंद किया, ताकि इस बात को सुनिश्चित किया जा सके कि अमेरिका में फाइजर जैसे वैक्सीन निर्माता कंपनी सभी मौसम का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त कच्चे माल की आपूर्ति प्राप्त कर सकते हैं। अमेरिका की इस कार्रवाई के प्रति भारतीय ेएए न्यूज ने बड़ा गुस्सा जताया और इसे 'टीका माफिया कार्रवाई' करार दिया।

साथ ही, भारतीय वेब स्क्रॉल के अनुसार, अगर अमेरिका भारत को टीके के उत्पादन में काम आने वाली 37 आवश्यक सामग्रियां नहीं देगा, तो भारत में टीके की उत्पादन लाइनें कई हफ्तों के भीतर काम करना बंद कर देंगी। यहां तक कि विश्व में सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता भारतीय सीरम अनुसंधान प्रतिष्ठान (एसआईआई) के सीईओ आदर पूनावाला ने हाल ही में ट्विटर पर अमेरिकी राष्ट्रपति से भारत से टीके के कच्चे मालों के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाने की मांग भी की। लेकिन खेद की बात है कि ह्वाइट हाउस द्वारा आयोजित नियमित संवाददाता सम्मेलन में इस मामले पर संवाददाताओं ने दो बार सवाल पूछा, लेकिन अमेरिका से कोई जवाब नहीं मिला।

शायद किसी व्यक्ति ने अमेरिका के लिए यह समझाया कि वर्तमान में अमेरिका में महामारी की स्थिति भी गंभीर है, इसलिए उसे सबसे पहले अपनी मांग को पूरा करना चाहिए। लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है। संबंधित आंकड़ों के अनुसार, अब अमेरिका विश्व में दूसरा बड़ा कोविड-19 रोधी टीके का उत्पादन देश है। लेकिन उसके द्वारा उत्पादित टीके मुख्य तौर पर निर्यात नहीं किए जाते हैं। अमेरिकी न्यूज वेब एक्सिओस की रिपोर्ट के अनुसार, इधर विश्व में अरबों लोग बेसब्री से टीके का इंतजार कर रहे हैं, उधर 3 करोड़ टीके अमेरिका के ओहियो स्टेट के गोदाम में संग्रहीत हैं।

यह कहा जा सकता है कि भारतीय जनता के प्रति अमेरिका की कार्रवाई तो 'लो चि श्या शी' का सच्चा प्रदर्शन है। अच्छा, अब हम इस मुहावरे के विपरीत शब्द 'श्वेए चोंग सुंग थेन' का परिचय देंगे। इसका मतलब है बर्फीले दिनों में लोगों को चारकोल देकर उनमें गर्माहट लाना। यानी आपातकालीन समय पर दूसरों को सामग्री या आध्यात्मिक मदद देना। उदाहरण के लिए टीके से जुड़ी सहायता में चीन ने न सिर्फ स्नेहपूर्ण बातों से लोगों के दिल को गर्म बनाया, बल्कि अपनी वास्तविक कार्रवाई से भी विश्व के सामने अपनी सच्चाई दिखाई है।

22 अप्रैल को चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में भारत में महामारी की गंभीर स्थिति की चर्चा में चीनी प्रवक्ता वांग वनबिन ने कहा कि कोविड-19 महामारी मानव का समान दुश्मन है। अंतर्राष्ट्रीय समाज को मिलजुल कर महामारी का मुकाबला करना चाहिए। चीन ने हाल ही में भारत में महामारी की गंभीर स्थिति पर बड़ा ध्यान दिया और पता लगाया कि भारत में महामारी की रोकथाम के लिए चिकित्सा आपूर्ति की अस्थायी कमी मौजूद है। चीन भारत को महामारी की रोकथाम करने के लिए आवश्यक समर्थन व सहायता देना चाहता है।

गौरतलब है कि चीन ने टीके की सहायता में नारे लगाने के साथ वास्तविक कार्रवाई भी की। अब तक विश्व में चीन द्वारा उत्पादित दो कोविड-19 रोधी टीकों की आपूर्ति 10 करोड़ खुराक से अधिक हो गई है। विभिन्न देशों की मांग से यह संख्या और बढ़ेगी। साथ ही, चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की कोवैक्स योजना में भी भाग लिया। अब चीन 80 देशों व 3 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को टीका सहायता दे रहा है, और 40 से अधिक देशों को टीके का निर्यात करने के साथ दस से अधिक देशों के साथ टीके से जुड़े अनुसंधान व उत्पादन में सहयोग कर रहा है। इसके अलावा, चीन ने संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान के जवाब में दुनिया भर के शांति रक्षकों को टीके प्रदान किए हैं। चीन की हर एक कार्रवाई से उसकी मानवीय भावना और एक बड़े देश के रूप में उसकी जिम्मेदारी जाहिर हुई है।

चीन में एक कहावत ऐसी है कि मुसीबतों में सहायता देने वाले मित्र तो सही मित्र हैं। कौन सच्चे मित्र हैं? और कौन ब्लैक-बेल्ड विलेन? अब बुद्धिमान लोग स्पष्ट रूप से यह समझ सकते हैं। एक पक्ष से नुकसान और दूसरे पक्ष से सहायता। आशा है, भारत सही विकल्प चुन सकेगा। अब चीन ने भारत को सहायता देने के लिए हाथ बढ़ाया है, तो भारतीय भाई-बहनों, आप लोग किस चीज का इंतजार कर रहे हैं?

(चंद्रिमा--चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

--आईएएनएस