मानवता को निरन्तर पतन की ओर ले जा रहा है मादक पदार्थों का सेवन

Jun 26 2020

मानवता को निरन्तर पतन की ओर ले जा रहा है मादक पदार्थों का सेवन
मादक-नशीले पदार्थों के सेवन का इतिहास, प्रकार, कारण, प्रभाव और रोकथाम

India Emotions. वर्तमान में समाज में विभिन्न प्रकार की समस्याएं व्यक्ति की परिपूर्णता में बाधक बनकर मानवता को निरन्तर पतन की ओर ले जा रही है। इन्हीं समस्याओं में एक बहुत बड़ी समस्या मादक पदार्थों के सेवन की है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति न केवल अपने स्वास्थ्य बल्कि अपने परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है। यद्यपि कि विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही भारत एवं विश्व के अन्य देशों होने के प्रमाण मिलते हैं। इस संबंध में इतिहासकार प्राचीन ग्रीक समाज की ओर इंगित करते हुए लिखते हैं कि- ‘उस समय सड़कों और गलियों में विभिन्न प्रकार के मादक द्रव्य विभिन्न स्वरूपों और आकृतियों में मिल जाया करते थे। लगभग 2000 वर्ष पहले इतिहासकारों ने ‘केनाबिज‘ नामक मादक द्रव्य का उल्लेख किया है। इस द्रव्य की विशेषताएं और उपयोग प्राचीन भारतीय तथा ऋग्वैदिक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रयोजनों में वृहद् स्तर पर होता हुआ पाया गया है। मनुस्मृति एवं वैदिक ग्रन्थों में सामाजिक एवं धार्मिक अवसरों पर सुरा, धतूरा, भांग/गांजा आदि मादक पदार्थों के सेवन का उल्लेख मिलता है। यदि हम इतिहास उठाकर देखें तो पता चलता है कि आर्य लोग सोमरस का पान करते थे। आठवीं एवं नौवीं शताब्दी में भी मादक पदार्थों का सेवन प्रचलित था। मुगल काल एवं उसके बाद 16वीं शताब्दी में धनाढ्य लोग मद्य एवं मादक पदार्थों का सेवन करते थे। इतिहास में इसके दुष्परिणामों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि जिस साम्राज्य का वैभवसूर्य प्रखर रूप से चमकता रहा उस समाज में जनता के बीच जैसे ही मद्य एवं मादक पदार्थों के सेवन की लत पड़ी वैसे ही उन साम्राज्यों का वैभवसूर्य अस्त हो गया। चाहे द्वारिका के यदुवंशी साम्राज्य का पतन हो, ग्रीक व रोमन साम्रज्यों का विनाश हो या मुगल व अवध के साम्रज्य हों, सबके पतन के मूल में मद्य एवं मादक पदार्थों के सेवन का योगदान रहा है।

लंका नरेश रावण के राज्य में भी मदिरा के प्रयोग का वर्णन मिलता है। उस समय मदिरा का प्रयोग करने वालों को राक्षस कहा जाता था। महाभारत काल में भी महाभारत के महायुद्ध के मूल में भी मद्य एवं मादक पदार्थों के सेवन के साथ द्युतक्रीड़ा (जुआ) में विवेकहीनता से लिए गए निर्णय ही हैं। धार्मिक ग्रन्थ यजुर्वेद में भी लिखा है कि अंगूर महुआ आदि से बनी शराब नशा उत्पन्न करती है। इसके सेवन से मनुष्य सत्यपथ से विमुख होकर कल्याणकारी आदतों व कार्यों से अलग होने लगता है:

योजनं व्ययने भवः स्वात्तानि पुंसस्त शत्रयः।
मिलित्वैनानि सर्वाणि समये ध्नान्ति मानवम्।।

अर्थात् व्यसनों से कोसों दूर रहें, क्योंकि यह प्राणघातक शत्रु है। इसी प्रकार सभी धर्मों में मादक पदार्थों के सेवन को वर्जनीय माना गया है। विश्व में धार्मिक प्रतिनिधियों एवं समाज सुधारकों द्वारा अनवरत अपनी शक्ति एवं साधनों के अनुरूप मादक पदार्थों के सेवन से समाज को बचाने का कार्य किया गया है। भारत के सन्दर्भ में भगवान बुद्ध द्वारा भी शराब को पाप एवं अनाचार की जननी कहा है तथा इससे बचने का संदेश दिया गया है। भारत में अग्रेंजों के आने से पूर्व नशे के रूप में मदिरापान केवल शासक वर्ग तक सीमित था। अग्रेंजों के आने के पश्चात् मदिरा के सेवन में निरन्तर वृद्धि होती गई।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शराबबन्दी को अपने राजनैतिक आन्दोलन का मुख्य अंग बनाकर सन् 1921 ई0 में असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात किया। आजादी के बाद भी महात्मा गांधी जी ने शराब के विरूद्ध आवाज़ उठाई जिसमें स्वामी दयानन्द सरस्वती, लोकमान्य गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, श्री गोपालकृष्ण गोखले एवं सभी धर्मों के अनुयायियों ने भी शराब की बिक्री व मद्यपान के विरूद्ध सख्त आन्दोलन का आह्वान किया। उन्होंने कहा था- ‘‘शराब की ओर लपकना, धधकती हुई भटठ्ी या बहती हुई नदी की ओर लपकने से बहुत ज्यादा खतरनाक है, भटठ्ी या नदी से तो केवल शरीर का नाश होता है मगर शराब शरीर व आत्मा दोनों का नाश कर देती है।‘‘ हमारे संविधान निर्माता डा0 भीमराव रामजी आम्बेडकर जी ने भी कहा है - ‘‘नशा करने की प्रवृत्ति उस समय बढ़ती है जब मनुष्य उद्देश्यहीन हो, हताशा, मानसिक अन्तर्द्वन्द्व से परेशान हो। जिस मनुष्य का तन-मन शुद्ध हो उसे तम्बाकू, धूम्रपान एवं शराब जैसी नशीली वस्तुओं की आवश्यकता नहीं।‘‘


धीरे-धीरे भारतीय समाज में अंग्रेजी सभ्यता के अन्धानुकरण एवं तनावों से भरी आधुनिक जीवन शैली से लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों यथा- शराब, अफीम, स्मैक, गांजा, ब्राउनशुगर आदि के सेवन का प्रचलन बढ़ता गया। नेशनल ड्रग डिपेंडेन्स ट्रीटमेन्ट सेन्टर (एन0डी0डी0टी0सी0) एवं एम्स के सहयोग से मादक पदार्थों के दुरुपयोग एवं उसकी गम्भीरता पर आधारित सर्वे रिपोर्ट वर्ष 2019 जो सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत की गयी है, के आधार पर इसकी भयावहता का अन्दाजा लगाया जा सकता है।

आंकड़े निम्नानुसार हैं - उत्तर प्रदेश में कुल 23.8% जिनमें 45.2%  पुरुष शराब का सेवन करते हैं। अर्थात् कुल लगभग 4.2 करोड़ व्यक्ति शराब का सेवन करते हैं। जो संख्या के सन्दर्भ में भारत में सर्वाधिक है पर अन्य राज्यों की तुलना में जनसंख्या के आधार पर 7वें स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में 10-75 वर्ष आयु समूह के लगभग 3.2% व्यक्ति चरस/गांजा आदि का सेवन करते हैं, जो अन्य राज्यों की तुलना में 8वें स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में 28 लाख ऐसे लोग जो चरस/गांजा उपभोग की समस्याओं से ग्रस्त हैं, को सहायता की आवश्यकता है। ओपियॉयड के उपभोग के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश में लगभग 10.7 लाख लोग मादक द्रव्यों का उपभोग करते हैं। उत्तर प्रदेश में 19.6 लाख व्यक्ति सिडेटिव्स का नशे के रूप में उपभोग करते हैं। इनमें 3.5 लाख लोग इस नशे की समस्या से ग्रस्त हैं और उन्हें सहायता की आवश्यकता है। इनहेलेन्ट/सूंघ कर लिये जाने वाले नशीले पदार्थों के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश में 94 हजार बच्चों को इनहेलेन्ट से होने वाली समस्याओं के निदान के लिये सहयोग की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश में लगभग 1.7 लाख लोग एम्फेटामाइन टाइप स्टिमुलैण्ट्स (ए0टी0एस0) की गिरफ्त में हैं। उत्तर प्रदेश में इन्जेक्शन ड्रग की समस्या से 1.00 लाख लोग ग्रसित हैं।

नशा क्या है- कोई भी नशीला पदार्थ जो आपकी मनोदशा को परिवर्तित कर दे, उसे नशा कहते हैं। अच्छा महसूस करने के लिये हो या बुरा महसूस न हो इसके लिये बार-बार नशा करना पडे तो वह नशे पर निर्भरता का लक्षण है। बार-बार इसके सेवन से इसका असर शरीर पर कम होने लगता है और ज्यादा नशे की जरूरत पडती है व इसकी मात्रा बढती जाती है। नशीले पदार्थों के उपलब्ध न होने से शरीर में जो तडप व बेचैनी होती है वही नशाखोरी करने वालों का लक्षण है। वर्तमान में विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन किया जाता है जो निम्न हैं-

हेरोइन- यह एक प्रभावशाली, लतवाली अवसादक है। आमतौर पर इसमें मनोस्फूर्ति बढाने वाले द्रव्यों अर्थात बेनजोडाइजेपाइन, बारबिटयूरेटस, मेथाक्वालोन और कैफेन का मिश्रण होता है। इसके सेवन से तनाव, घबराहट और उदासी दूर होने का आभास होता है। साथ ही सुखाभास, अपनापन, संतुष्टि, भावनात्मक और शारीरिक तकलीफों से अलगाव का भी आभास होता है। हेरोइन सडकों, गलियों में काफी मंहगी दर पर बिकती है। इसे सूंघकर लेते हैं या सुई लगाते हैं। औसत एक बार में एक ग्राम लिया जाता है। शुरूआती सुखाभास 10-15 मिनट का होता है और पूरा असर 6-10 घंटे तक रहता है। हर बार वही आनंद पाने के लिये ज्यादा मात्रा में हेरोइन चाहिये होती है।

इसके नहीं मिलने से चक्कर आते हैं, उल्टियां होती हैं, पसीना आता है, नाक बहती है, आंखों में काफी पानी आता है, शरीर में कंपन महसूस होता है, नींद नही आती है, मांस पेशियों में खिंचाव आता है और पूरे शरीर में दर्द होता है। चक्कर आते हैं, एकाग्रता नष्ट हो जाती है, यौन संबंधों में रूचि खत्म हो जाती है। भूख भी कम हो जाती है। ज्यादा मात्रा में नशा करने से सांस लेने में तकलीफ होती है और मौत भी हो सकती है। अगर संक्रमित सुई का उपयोग नशे के लिये किया जाये तो एच0आई0वी0 जैसी संक्रमण से होने वाली बीमारियां भी हो सकती है। इसके व्यसनी का जीवन दूसरों से पैसे मांगने, नशा खरीदने और उसके सेवन के चक्रव्यूह में फंस जाता है।

कोकेन और क्रैक- यह एक प्रभावशाली नशीला पदार्थ है। कोकेन एक सफेद पाउडर है जो काफी मंहगा बिकता है। इसे सूंघकर या सुई के माध्यम से लिया जाता है। क्रैक ऐसा कोकेन है जिसमें अमोनिया या बेकिंग सोडा मिलाया जाता है। ताकि उससे धूम्रपान किया जा सके। क्रैक छोटे-छोटे पत्थरनुमा दिखता है। इनका मिश्रण गहरी उत्तेजना पैदा करता है जिसका असर कुछ मिनटों या कभी-कभी कुछ घंटों कें लिये रहता है। इसके सेवन से व्यक्ति को भ्रम होता है कि वह जीवंत है, सुखी है, बेहद आत्मविश्वास से युक्त है और सबकुछ उसकी मुटठी में है।

 पहली बार इसका इस्तेमाल किसी भी तरह करें आप इस पर कितने निर्भर हैं, यह स्तर पता कर पाना मुश्किल होता है पर व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से इसका आदी हो जाता है। नशे में व्यक्ति हिंसक हो जाता है, कभी उसका व्यवहार अजीब सा होता है। वह झुंझलाया सा रहता है। उसके स्वभाव व मूड में बदलाव आते रहते हैं। वह घबराहट महसूस करता है और वास्तविकता से दूर भागता है। कोकेन के लगातार इस्तेमाल से हृदयगति रूकने की सम्भावनाएं होती है। सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। लकवा, घबराहट बेचैनी जैसी स्वास्थ्य समस्यायें हो सकती हैं। कोकेन या क्रैक को दूसरे नशीले पदार्थाें से मिश्रित कर लेने से खतरा बढ जाता है और मौत भी हो सकती है। 

नशा उतरने के बाद इसे लेने वालों का अनुभव अच्छा नहीं होता। शारीरिक तौर पर वे थके हुये और कमजोर महसूस करते हैं और मानसिक तौर पर झुंझलाये हुये रहते हैं। उसे नशे की तडप महसूस होती रहती है।

मिश्रित नशा (एक्सटेसी, एक्स टी सी, एडम, ई, स्पीड, एसिड, एलएसडी, रूफी, जीएचबी, रोश, आईस, केटामिन, मेथामफेटामाइन) -  यह पूरे रात्रि की डांस क्लबों/डांस बारों में होने वाली नृत्य पार्टियों/रेव पार्टियों में उपयोग में लाई जाती है। इनका सेवन मूड को अच्छा बनाने या रातभर नाचने के लिये शक्ति प्रदान करने के लिये होता है। इनमें कुछ नशीले पदार्थ रंगहीन, स्वादहीन और गंधहीन होते हैं इसलिये पेय पदार्थों में आसानी से मिलाये जा सकते हैं। अक्सर इसके बाद यौन संबंध संबंधित दुर्घटनायें होती हैं। इसलिये इसे डेट रेप ड्रग्स भी कहते हैं।

एक्सटेसी के सेवन से बेहद शांति महसूस होती है, लगता है दुनिया खुद में आत्मसात हो गयी है। शुरूआती जांच में पता चला है कि इससे मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है और आगे चलकर याददाश्त खो जाती है। शुरूआत में पानी की कमी व गरमी अधिक हो जाती है।

परिणामस्वरूप व्यक्ति वास्तविकता से दूर हो जाता है, उसके दांत किटकिटाते हैं और वह संभ्रान्ति की स्थिति में रहता है।
जीएचबी (गामा हाइड्रोएक्सीब्यूटिरेट) के सेवन से याददाश्त खोने की संभावनायें होती हैं। स्पीड, आईस, मेथामफेटामाइन से शरीर और स्वभाव में आक्रामकता, हिंसक प्रवृत्ति, घबराहट और हृदय संबंधी समस्यायें बढती हैं। एलएसडी (लिसर्जिक एसिड डाइथेलामाइड) या एसिड एक प्रभावशाली और मस्तिष्क पर असर डालने वाला पदार्थ (हेल्यूसिनोजेन) है जिससे व्यक्ति वास्तविकता से दूर हो जाता है। इसका अनुभव डरावना होता है। सालों बाद तक पुरानी बातें याद आती है। इसका एक बार उपयोग करने पर भी दूरगामी मनोवैज्ञानिक असर रहता है। रूफी या रोश(रोहिपनोल) आमतौर पर शराब के साथ उपयोग में लाया जाता है। इससे अंदर की हिचक खतम होती है। अक्सर पुरानी बातें या गम भुलाने के लिये लोग इसका उपयोग करते हैं।

कैनाबिस/मैरियुआना/गांजा/भांग-
यह हल्के स्तर का नशा अर्थात हेल्यूसिनोजेन और अवसादक है। स्कूली छात्रों में शराब के बाद यह सबसे प्रचलित नशा है। लोग कहते हैं कि इसके उपयोग से लत नहीं लगती है। लेकिन हमारे देश में नशे के इलाज के लिये आये अधिकांश लोग इसी लत के आदी होते हैं। लोग इसके बाद और गम्भीर नशे के इच्छुक हो जाते हैं। इसके सेवन से व्यक्ति को अच्छा, सुखी, उत्तेजित और सुकून महसूस होता है। इसके लगातार सेवन से हमारी इंद्रियों की क्षमताओं का ह्रास होने लगता है।
कैनाबिस को सिगरेट या चिलम में डालकर पिया जाता है। भांग भी एक प्रकार का पत्ता होता है। जिसे पीसकर पेय या मिठाई/खाद्य पदार्थ आदि के साथ लेते हैं।

इससे दूसरों पर निर्भरता बढती है। त्वरित रूप से कुछ वक्त के लिये याददाश्त खो जाती है। एकाग्रता कम हो जाती है। पढाई का स्तर कम होने लगता है। पुरूषों में नपुंसकता बढती है। हृदय संबंधी समस्यायें बढती हैं। ज्यादा वक्त तक इसके सेवन से मानसिक रोग हो सकते हैं, भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक विकास धीमा हो जाता है। कैनाबिस में कैंसर उत्पन्न करने तत्व सिगरेट से अधिक होते हैं। शराब 24 घंटों में शरीर से बाहर हो जाती है, पर कैनाबिस का असर सेवन के बाद 30 दिनों तक रहता है।


दवाईयों का मिश्रण- यदि चिकित्सक की राय के बगैर अधिक मात्रा में लिया जाये तो कुछ कानूनी दवाइयां भी नशा उत्पन्न कर सकती हैं। जो निम्न हैं-
1- कफ सिरप जिसमें कोडिन हो जैसे फेनसेडिल और कोरेक्स।
2- नींद की गोलियां जिनमें डाइजेपाम हो जैसे कि कामपोज, वेलियम, अल्प्रेक्स या नाइट्राजेपाम।
3- दर्द निवारक दवाईयां जिनमें डेक्स्ट्रोप्रोपोजाइफिन हो जैसे कि स्पाज्मोप्रोक्सीवान और बूप्रेनोरफिन।
4- सूईयां जैसे कि टाइडीजेसिक, नारफिन, नारफेजाइन और एविल।
यह सभी प्रभावशाली व नशीले अवसादक हैं। इनके सेवन से शांति, संतुष्टि, आत्मविश्वास से भरपूर होने का आभास होता है। तनाव, घबराहट, दर्द, नींद की कमी और अवसाद घटता है। अपनापन, संतुष्टि, भावनात्मक और शारीरिक तकलीफों से अलगाव महसूस होता है। ये गोलियां, कैपसूल, सुईयों की दवा या सिरप के रूप में मिलती है। आमतौर पर ये केमिस्ट की दुकान से बगैर डाक्टर की पर्ची के खरीदी जाती हैं। इनके नकली होने की भी संभावना रहती है। नशा पैदा करने के लिये ये दवाईयां काफी अधिक मात्रा में ली जाती हैं। इनके न मिलने से चक्कर आना, उल्टियां आना, पसीना आना, नाक बहना, आंखों से ज्यादा पानी आना, कंपकंपी होना, नींद न आना, मांसपेशियों में खिंचवा होना, शरीर में दर्द व ऐंठन होना स्वाभाविक से लक्षण हैं। अधिक मात्रा में लेने से जिगर को नुकसान पहुंचता है, पीलिया हो जाता है, सांस लेने में तकलीफ होती है व कभी-कभी मौत भी हो सकती है। लगातार सुई लगाने से नसों को नुकसान पहुंचता है व शरीर क्षतिग्रस्त हो जाता है।

शराब-  यह एक अवसादक है। जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और दिमाग की गतिविधियों को घटा देती है। अक्सर अभिभावकों के अनुसरण में या मित्रों के दबाव में युवावर्ग शराब पीना शुरू कर देते हैं। छोटी आयु में शराब की लत मस्तिष्क के विकास को गंभीर क्षति पंहुचा सकती है। हमारे देश में शराब की लत से सबसे अधिक घरेलू हिंसा होती है और सडक दुर्घटनायें होती हैं। शराब के लगातार सेवन से लिवर संबंधी बीमारियां हो जाती हैं, नपुंसकता, नींद की कमी, कंपकंपी होना व मानसिक बीमारियों के साथ-साथ कभी-कभी मौत भी हो जाती है। गर्भावस्था में महिलायें अगर शराब पीती हैं तो बच्चे पर भी इसका बुरा असर पडता है।

तम्बाकू- यह काफी नशीला होता है। आसानी से उपलब्ध होने की वजह से युवावर्ग इसकी तरफ आकर्षित होता है। युवा अपने दोस्तों के दबाव से या अभिभावकों की नकल करने के लिये सिगरेट पीते हैं। सिगरेट पीकर लोग स्वयं की जिन्दगी तो धुआं-धुआं करते ही हैं, दूसरों के जीवन में भी जहर घोल देते हैं। इसलिये इस बुराई सें खुद व औरों को बचाने के लिये यह जरूरी हो जाता है कि हम धूम्रपान करना छोड दें। धूम्रपान एक लत है। इसके जरिये निकोटीन शरीर के अंदर जाता है। निकोटीन मनुष्य की इच्छाशक्ति को कमजोर करता है। जिससे धूम्रपान छोडना कठिन हो जाता है। इससे फेफडे का कैंसर, हृदयाघात और सांस से जुडी कई बीमारियां हो सकती हैं। उपरोक्त के अतिरिक्त कई ऐसे पदार्थ हैं जिन्हें संूघकर नशे का आभास होता है, जैसे-वाइटनर, पेट्रोल, फिनायल, नेल पालिस रिमूवर आदि। नशे के रूप में इनका सेवन करना बेहद घातक है। इनका दूरगामी परिणाम यह है कि ये मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाते हैं। 

नशीले पदार्थाें का कुप्रभाव - नशीले/मादक पदार्थों के सेवन के फलस्वरूप न केवल विभिन्न प्रकार की शारीरिक व्याधियां पैदा होती हैं अपितु व्यक्ति, परिवार व समाज का विघटन हो जाता है। लम्बे समय तक अधिक मात्रा में मादक पदार्थों के सेवन से शरीर निष्क्रिय व कमजोर हो जाता है। रोगों से लडने की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है। फलस्वरूप अनेकों प्रकार के प्राणघातक रोग पनपने लगते हैं। शारीरिक दुष्प्रभावों के साथ-साथ मादक पदार्थों के सेवन से कार्यक्षमता व मानसिक क्षमता का भी ह्रास होता है। मस्तिष्क कमजोर हो जाता है, भावनात्मक व बौद्धिक शक्ति क्षीण हो जाती है। इसके अतिरिक्त आय का अधिकांश भाग नशे की भेंट चढ जाता है। व्यक्ति कार्य से अनुपस्थित रहने लगता है। अंततः बेकारी अनेक प्रकार की समस्यायों को जन्म देती है। अपराध, दुर्घटना, आत्महत्या आदि का ग्राफ बढने लगता है। 

- जलज मिश्र (क्षेत्रीय मद्यनिषेध अधिकारी, लखनऊ।)