युवावर्ग को नशे की अंधी गलियों में भटकने से बचाना ही होगा ...

Jan 23 2020

युवावर्ग को नशे की अंधी गलियों में भटकने से बचाना ही होगा ...

इंडिया इमोशंस, लखनऊ। आधुनिकता की ओर कदमताल करते इस भारतीय समाज में युवा पीढ़ी में मादक पदार्थों के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति एक गंभीर समस्या है। इस समस्या के पीछे घर का वातावरण एक खास कारक है। माता-पिता के अपसी तनावपूर्ण संबध, घर के बड़ों का स्वयं नशीले पदार्थे का सेवन करना, आदि बच्चों, युवाओं के लिए मादक पदार्थे के प्रति आसक्त होने में बड़ी प्रेरणा बनाता है। अगर ऐसे में नशेबाज दोस्तों की संगत हो जाय तो नशे की लत पडऩा स्वाभाविक है। इसके अलावा पाठ्यक्रमों की नीरसता, मशीनी अध्ययन शैली, मौजूदा सामाजिक परिवेश, सिनेमा का प्रभाव, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि युवा वर्ग में नशीले पदार्थे का अधिक सेवन करने के कारण है। शिक्षित कहा वाला वर्ग इसे बौद्धिक व्यक्तित्व में निखार आंतरिक शक्तियों में वृद्धि, स्मरण शक्ति बढ़ाने तथा अधिक परिश्रम के नाम पर अंगीकार कर रहा है।
मनोचिकित्सीय अध्ययन बताते हैं कि मादक पदार्थों का सेवन अधिकतर वे लोग करते हैं जो स्वर्य को अयोग्य, अकुशल, व कमजोर समझते हैं तथा हमेशा एक निराशावादिता के साथ जीवन जीते हैं। मादक पदार्थो का सेवन करने के बाद उन्हें भ्रामक अहसास होता है कि वे निराशा को जीत रहे हैं तथा बलवान व आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इससे भा्रामक सुखानुभूति होती है। सुखानिभूति की कामना करना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। बहुत सामान्य से लगने वाले यह कारण युवा को नशे की अंधी गलियों में भटकने पर मजबूर कर देते हैं।
एक बार जो नशे की गिरफ्त में आ जाता है वह मुश्किल से ही निकल पाता है। यह लत इतनी बुरी होती है कि नशीला पदार्थ पाने के लिए व्यक्ति किसी भी हद तक गिर सकता है। मादक पदार्थों के सेवन का मानव मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है, इसके सेवन के आदि व्यक्ति का ज्ञान और दुखों पर नियंत्रण शिथिल पड़ जाता है। मानसिक संतुलन भी बिगड़ जाता है। आखिरकार मादक पदार्थों के नियमित सेवन से व्यक्ति धीरे-धीरे अनुपयोगी व अनुत्पादक बोझ बनकर समाज के लिए अभिशाप बन जाता है।
इस समस्या से बचने के लिए सर्वप्रथम स्वयं के स्तर से प्रयास की पहल करनी चाहिये। इस पहल से आशय है कि, अपने बच्चों से शराब एवं नशे के बारे में बातचीत करना जरुरी है क्योंकि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि वह नशे का आदि हैे या नहीं? खास बात यह है कि, वह कभी भी नशे का आदि हो सकता है। आपको लगता है कि जब आपका बच्चा नशा करेगा तो आपको स्वयं ही पता चल जाएगा। पर सच्चाई यह है कि आज बाजार में कई तरह के सस्ते नशीले पदार्थ उपलब्ध हैं। जिन्हें हासिल करने के लिए युवाओं को घर से पैसे चुराने या मांगने की भी आवश्यकता नहीं है। नशे की लत के लक्षण उनके शरीर में तुरंत नहीं दिखने लगते हैं। संभव है कि आपके बच्चे के स्वभाव में चिड़चिड़ापन महसूस हो। पर नशा करने से स्वास्थ्य पर जो विपरीत प्रभाव पड़ता है वह तुरंत दिृष्टगोचर नहीं होते। अमूमन अभिभावक ही वह अंतिम व्यक्ति होते हैं जिन्हें बच्चे की इस लत का पता चलता है। तब तक समस्या बढ़ जाती है।


अभिभावकों, परिवार को बच्चे के स्वभाव व आदतों में अस्वाभाविक बदलाव, गुस्सा या चिड़चिड़ापन का बढऩा, दोस्तों में अचानक बदलाव, पढ़ाई के स्तर में गिरावट, पैसों का हिसाब न रखना, सिगरेट या रसायन के गंध को छिपाने के लिए परफ्यूम या डियोडरेंट, माऊथ फ्रेशनर का प्रयोग ज्यादा करने लगना, दोस्तों के साथ बातचीत में कोड भाषा बढऩा, पैसे उधार मांगने की आदत बढऩा, नशे में उपयोग आने वाली पाइपों, रोलिंग कागजों, माचिस वगैरह का उनके आसपास पाया जाना, अवसादक व नारकोटिक्स दवाईयों को खरीदना आदि ऐसे लक्षण हैं जिनपर गौर करके सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि बच्चा नशे की गिरफ्त में है।
अगर परिवार को कोई सदस्य या बच्चा नशे की हालत में है तो उसके नशा उतरने का इंतजार करें, शांत रहते हुए बगैर उसे लड़े पूरी स्थितियों पर बातचीत करें। बगैर किसी निर्णय पर पहुंचे बच्चे की बात ध्यान से सुनें। बच्चे की बात से यदि आप चिंतिति हों तो बगैर गुस्सा किये उसे अपनी चिंता से अवगत करायें। आप दृढ़ रहें और प्यार से लगातार यह समझाएं कि नशा करना किसी भी रूप में हितकर नहीं है। किसी भी परिस्थिति में आप कमजोर न पड़ें। अगर आपका बच्चा नशे का आदि है तो स्थितियों पर अकेले काबू पाने की कोशिश न करें। अकसर अभिभावक बात बाहर न जाय इसलिए अकेले इस समस्या से जूझते रहते हैं। उन्हें चिकित्सीय सलाह और मदद अवश्य लेनी चाहिये। यह एक शारीरिक बीमारी है। अपने बच्चे को उपेक्षित न करें। इस समस्या से मुक्त होने में उसको आपके व परिवार के मानसिक संबल सर्वाधिक आवश्यकता है।
बच्चे के साथ अधिक से अधिक वक्त गुजारें, उनकी भावनाओं को समझें व उनकी इज्ज्त करें। सबसे पहले बच्चों को सुनें। उसके बाद उनसे अपने विचारों से अवगत करायें। बच्चों में खेलकूद, संगीत जैसे कार्यों को बढ़ावा दें पर हमेशा जीतने का दबाव न बनाएं।
आप अपने बच्चों के आदर्श हैं इसलिए वह आपकी नकल करेगा अत: स्वयं ऐसा आचरण न प्रस्तुत करें जिससे बच्चा नशे की ओर उन्मुख हो। अर्थात स्वयं नशीले पदार्थों का सेवन न करें। अपने बच्चों को दूसरो विशेषकर दोस्तों के सामने नीचा न दिखाएं। साथ ही बच्चों के दोस्तों व उनके परिवार के बारे में जानकारी अवश्य रखें। बच्चे को ना कहना सिखाएं । किसी भी परिस्थिति में नशीले पदार्थो को मना करने का आत्मबल बच्चे में विकसित करें। परिवार, व्यक्ति की प्रथमा पाठशाला है। इसलिए मादक पदार्था के सेवन की रोकथाम के लिए परिवार की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। परिवार का दायित्व है कि वह अपने बच्चों की उपेक्षा न करे। उनकी उचित इक्षाओं का आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न करें व उन्हें ऐसे संगी साथियों से दूर रखों जो नशा करते हों।
परिवार के बड़े, बुजुर्ग नशा न करें, क्योंकि अकसर यह देखा गया है कि परिवार के बड़ों को ही देखकर बच्चे उनका अनुसरण कर नशे की ओर आकर्षित होते हैं। परिवार का वातावरण शांत प्रेमपूर्ण परिवारिक स्नेह एवं आदर से पूर्ण होगा तो बच्चा परिवार के प्रति लगाव महसूस करेगा। वहशांति की खोज में नशे की ओर दिलचस्पी नहीं लेगा। बहुत साधारण या आसान सी लगने वाली यही वह छोटी छोटी बातें है जिनपर अमल कर अपने समाज के युवावर्ग को नशे की अंधी गलियों में भटकने से बचाया जा सकता र्है।

 जलज मिश्र

 क्षेत्रीय मद्यनिषेध अधिकारी, लखनऊ

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